हम सभी के जीवन में “पढ़ाई” की एक अहम भूमिका है। शिक्षा ही हमें मनुष्य बनाए रखने में सक्षमता प्रदान करती है । “इंसान बिन ज्ञान पशु समान” ऐसा कई दार्शनिक व बुद्धिजीवियों द्वारा माना गया कि यदि मनुष्य के पास ज्ञान नहीं होगा तो वह पशु समान ही है। इसी के मध्य नजर आज के समाज में पढ़ाई की एक अहम भूमिका मानी गई है मानव जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा हम शिक्षा ग्रहण करने के लिए अथवा ज्ञान के लिए देते हैं। आज के पढ़े-लिखे समाज में हम अपने जीवन का लगभग एक तिहाई हिस्सा पढ़ाई के लिए दिया जाता है । जहां बचपन से ही बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल भेजा जाता है ताकि उनकी नींव में ही ऐसे गुणों का विकास हो सके जिससे वह मनुष्य कहलाया जा सके और यह पढ़ाई अमूमन 20 से 25 वर्ष की उम्र तक चलती है यानी जीवन का आधार जीवन की नींव तय करने वाले महत्वपूर्ण वर्ष – समय हम पढ़ाई को देते हैं ।
पढ़ाई करने का उद्देश्य रोटी, कपड़ा और मकान यह तीनों जरूरतों की पूर्ति है जिससे जीवन यापन सकुशल सामंगल व्यतीत किया जा सके किंतु एक चौथी चीज भी है जो इन तीनों से कहीं महत्वपूर्ण है वह है “आत्मज्ञान” । रोटी, कपड़ा, मकान और ज्ञान यही वह चार चीज़ हैं जिसके आधार पर समुच्चय समाज टिका हुआ है । यह पूरा समाज इसी नींव पर आधारित है । सामान्यतः एक व्यक्ति अपनी पढ़ाई पूर्ण करने के बाद एक रोजगार की तलाश में होता है जिससे वह अपना जीवन यापन कर सके यानी रोटी कपड़ा और मकान अर्जित कर सके अब यहां समझने वाली बात यह है कि हमने तीन मुख्य जरूरतें तो पूरी कर ली पर क्या इसके अलावा चौथी सबसे महत्वपूर्ण जरूरत “ज्ञान” को पूर्ण करने के लिए भी अग्रसर होते हैं ? क्या हम हमारा पूरा जीवन ज्ञान के लिए समर्पित करते हैं ? क्या हम हमारे जीवन का ज्यादातर समय ज्ञान अर्जित करने के लिए देते हैं ? क्या हमारा मूल उद्देश्य ज्ञान हासिल करना होता है? शिक्षा विद्या और ज्ञान यह तीन अलग-अलग है हम शिक्षा और विद्या तक तो पहुंच जाते हैं पर क्या ज्ञान को उपलब्ध हो पाते हैं ? जो कि मानव जीवन का प्रथम व अंतिम उद्देश्य है ?
शिक्षा यानी तथ्यों को जानना विद्या यानी उन तथ्यों का उपयोग करना और आत्मज्ञान यानी उन तथ्यों से परे सत्य को जानना, स्वयं को जानना, आत्मज्ञान को उपलब्ध होना। हमारी पूरी पढ़ाई तथ्यों पर आधारित है हम तथ्यों को जानने के लिए अपने जीवन का अधिकांश समय देते हैं परंतु इन तथ्यों को जानने से भी महत्वपूर्ण बिंदु यानी सत्य की खोज पर समय देते हैं ?
ज्ञान की दो धाराएं हैं बाहर जितना कुछ ज्ञान के रूप में हमें दिखाई पड़ता है वह सब “विज्ञान” कहलाता है और भीतर का ज्ञान “आत्मज्ञान” कहलाता है ।
हमारी पूरी पढ़ाई हमारे 15 से 18 साल बाहरी ज्ञान को जानने में यानी तथ्यों को जानने में बिताते हैं किंतु क्या हम सत्य का पथिक अर्थात आत्मज्ञान का पथिक भी बनते हैं ?
अभी मुख्य तौर पर हमें यह समझना जरूरी है कि जिस तरह नींव की मजबूती से ही इमारत की मजबूती है, इमारत का उच्चतम स्तर है, जिस तरह जड़ से ही पेड़ की मजबूती है, जड़ के बिना पेड़ का अस्तित्व नहीं है ठीक उसी प्रकार मनुष्य जीवन के शुरुआती 15 से 20 साल उस जड़ की तरह हैं उस नींव की तरह है जिन पर इसके आगे का जीवन निर्भर करता है यानी व्यक्ति के शुरू के 15 से 20 साल तय करते हैं कि उसके आगे का जीवन कैसा होगा ! और यही शुरुआती 15 से 20 साल हम स्कूली सिस्टम ( स्कूली शिक्षा पद्धति ) को महत्वपूर्ण जानकार अपना समय देते हैं लेकिन इस स्कूल की शिक्षा पद्धति से होने वाली दुष्प्रभावों से ज्यादातर लोग अनजान रहते हैं । दरअसल हिंदुस्तान में जो शिक्षा पद्धति वर्तमान में चल रही है वह भारतीय है ही नहीं वह अंग्रेजों द्वारा भारत को गुलाम बनाने और अपने लिए कुशल नौकर तैयार करने के लिए हमें दी गई थी और दुर्भाग्यवश अंग्रेजों द्वारा हिंदुस्तान के लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बनाने की मंशा से स्थापित की गई यह शिक्षा पद्धति आज भी हिंदुस्तान के लगभग सभी स्कूलों में चल रही है। इस शिक्षा पद्धति से उत्पन्न हो रही समस्याओं की जड़ को समझकर इसमें सुझावित समाधानों को अपनाकर इस मानसिक गुलामी भरी शिक्षा पद्धति में बदलाव लाया जा सकता है ।