पढ़ाई में मन ना लगने का कारण !

प्रश्न : आज के समय में बच्चों का पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगता है उन्हें जब तक कहा ना जाए तब तक वह पढ़ाई नहीं करना चाहते हैं ऐसा क्यों ?

उत्तर : दरअसल यह गलतफहमी है कि आज के समय में बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है सच्चाई तो यह है कि आज से पहले जो पीढ़ी थी उनका भी पढ़ाई में मन नहीं लगता था और उनसे पहले वाली पीढ़ी का भी पढ़ाई में मन नहीं लगता था बस फर्क सिर्फ इतना सा है कि आज से पहले की पीढ़ी में डांट – मार पिटाई, पेरेंट्स का डर, प्रेशर टीचर्स का डर ज्यादा था इसीलिए वह खुलकर अपनी अनिच्छा को जाहिर नहीं कर पाते थे और हमें ऐसा लगता था कि वह मन लगाकर पढ़ाई करते हैं जबकि वह डर में रहकर पढ़ाई करते या कई तरह का लालच उन्हें दिया जाता था जिसके फलस्वरूप वे पढ़ाई किया करते थे |
आप पिछली पीढ़ी के लोगों से बात करें और उनसे पूछे कि आप जब अपने समय में पढ़ाई किया करते थे तो आपका अनुभव कैसा था तो आपको हर व्यक्ति यह कहता हुआ मिल जाएगा कि हमारे समय की जो पढ़ाई थी वह आज कहां ! हमारे समय में मास्टर जी जब लठ बजाया करते थे पिटाई किया करते थे तो सारे बच्चे कांप जाया करते थे | जब घर पर मास्टर जी कंप्लेंट कर दिया करते थे कि बच्चा घर पर पढ़ाई नहीं करता है तो पेरेंट्स बच्चों की अच्छी खातेदारी किया करते थे और यही खातिरदारी बच्चों में पढ़ाई के प्रति डर पैदा कर देती थी जिससे उनकी मजबूरी बन जाती थी पढ़ाई करना | स्कूल जाते समय टीचर का डर और घर पर रहते समय पेरेंट्स का डर |

इसके अलावा एक और तरीका था “लालच” स्कूल में जो बच्चा अच्छा पढ़ाई करेगा उसको तालियां मिलती है उसको टीचर की नजर में अच्छा माना जाता है उसे टीचर का साथ ज्यादा मिलता है बच्चे उसकी वाह- वाई करते हैं सभी बच्चे उसके दोस्त बनना पसंद करते हैं और घर पर भी जो बच्चा अच्छा पढ़ाई करता उसे पेरेंट्स की तरफ से अलग-अलग तरीके के लालच दिए जाते अलग-अलग तरीके के इनाम में उसे फसाया जाता कि यदि अच्छे नंबर ले आएगा तो साइकिल मिल जाएगी, घूमने ले जाएंगे, इत्यादि | तो यदि देखा जाए तो इससे पहले भी जो पढ़ाई हुआ करती थी वह भी स्वेच्छा से नहीं थी सच्चाई की बात करें तो मन उनका भी नहीं लगता था बस उन्हें उनकी ना पढ़ने की इच्छा प्रकट करने की उतनी आजादी नहीं थी | तो यह तो स्पष्ट होता है की पढ़ाई कभी भी इतनी रुचि आत्मक नहीं रही कि ज्यादातर बच्चे अपनी इच्छा से पढ़ाई करें और खूब मन लगाकर पढ़ाई करें बिना किसी डर या लालच के, अब इसका अर्थ यह हुआ की समस्या बच्चों में तो नहीं है आज की पीढ़ी में तो नहीं है कि हमें ऐसा लगता है कि आज की पीढ़ी ही ऐसी है आज के समय के बच्चे ऐसे है तो ऐसा नहीं है । अब रहा सवाल मन ना लगने का पढ़ाई करने की इच्छा ना होने का तो ऐसा क्यों होता है जबकि सभी जानते हैं पढ़ाई बहुत महत्वपूर्ण है जीवन में बहुत काम आएगी लाभ देगी उसके बावजूद भी पढ़ाई में मन नहीं लगता तो इसके कारण को जड़ से समझने की आवश्यकता है और यदि कारण की जड़ तक पहुंच जाएंगे तो समाधान भी वहीं से निकलेगा | समस्या ना तो किसी पीढ़ी में है किसी बच्चे में है ना ही किसी टीचर में है ना ही सिलेबस में है और ना ही किसी पेरेंट्स में है समस्या की जड़ है “शिक्षा पद्धति” हमारे स्कूलों द्वारा अपनाया गया “पढ़ने पढ़ने का तरीका” |

दरअसल हिंदुस्तान में जो शिक्षा पद्धति चल रही है जिसे हम “भारतीय शिक्षा पद्धति” कहते हैं यही समस्या की जड़ है। दरअसल हम जिसे भारतीय शिक्षा पद्धति कह रहे हैं वो भारतीय है ही नहीं | वह शिक्षा पद्धति जो आज हिंदुस्तान के लगभग सभी स्कूलों में अपनाई जा रही है वह भारतीय है ही नहीं | हिंदुस्तान के सभी स्कूलों में पढाई जा रही शिक्षा पद्धति आज से लगभग 200 साल पहले हमें अंग्रेजों द्वारा दी गई थी | हिंदुस्तान को गुलाम बनाने की मंशा से ! जब अंग्रेज हिंदुस्तान आए तो उन्होंने पाया कि यहां लोग एक दूसरे का सहयोग करते थे यहां लोग लगभग हर कौशल में निपुण थे आत्मनिर्भर थे स्वावलंबी थे, यह सब देख-जान अंग्रेजों को समझ आया कि हिंदुस्तान को गुलाम यदि बनाना है तो फसल पर नहीं बल्कि पौध पर काम करना होगा अर्थात बड़ों को प्रत्यक्ष तौर पर गुलाम नहीं बनाया जा सकता बल्कि बच्चों की मानसिकता को ऐसा तैयार किया जा सकता है जिससे वे आगे चलकर हमारा कहा माने और हमारे अधीन होकर काम करें अर्थात हमारी गुलामी करें | इस मंशा से लॉर्ड मैकाले नामक अंग्रेज ने योजना बनाई भारत की शिक्षा पद्धति एकमात्र ऐसी कड़ी है जिसे बदलकर ही हिंदुस्तान में राज किया जा सकता है यहां के लोगों को गुलाम बनाना है तो शिक्षा पद्धति को बदलना सबसे कुशल विकल्प है और यही रणनीति लेकर अंग्रेज हिंदुस्तान आए और उन्होंने हिंदुस्तान में अपनाई जा रही हमारी पौराणिक परंपरागत गुरुकुल प्रणाली को बदलकर एक ऐसी शिक्षा पद्धति का निर्माण  किया जिसमें बच्चों को सोचने – समझने – प्रश्न करने की आजादी नहीं थी | जिसमें उन्होंने ऐसी मानसिकता विकसित की जहां एक व्यक्ति के आदेश पर बाकी सब उसका अक्षरशः पालन करेंगे |

अंग्रेजों की शिक्षा पद्धति फूट डालो और राज करो पर आधारित थी जहां जब भी कक्षा में बच्चे आपस में एक दूसरे से पूछना बताना चाहते एक दूसरे से सीखना चाहते एक दूसरे को सहयोग करना चाहते तो उन्हें वहां रोक दिया जाता दंडित किया जाता ताकि वह आपस में एक दूसरे का सहयोग न कर पाएं बल्कि एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में रहें एक दूसरे से आगे निकलने की एक अंधी दौड़ में फंस जाएं और अपने अस्तित्व को अपने व्यक्तित्व को भुलाकर एक भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाएं और अंग्रेजों के अधीन ग्रस्त हो जाएं अंग्रेजों के गुलाम बन कर रह जाए |
अंग्रेज अपने लिए कुशल नौकर तैयार करना चाहते थे ऐसे नौकर जिन्हें जो आदेश दिया जाए वह उसका पालन करें उसमें अपने बुद्धि बल का प्रयोग ना करें और ऐसे नौकर तैयार करने के लिए उन्हें सिर्फ दो कौशल का आना उस समय अनिवार्य था पहला था पढ़ना यानी रीडिंग दूसरा था लिखना यानी राइटिंग और इन्हीं दो कौशल के आधार पर अंग्रेजों ने पूरी शिक्षा पद्धति को तैयार किया पूरे स्कूली सिस्टम को तैयार किया जिसमें यह दो काम लिखना और पढ़ना जो बच्चा जितने अच्छे से जानता उसे उतने अच्छे मार्क्स दिए जाते और उसे उतना अच्छा विद्यार्थी घोषित किया जाता |
जबकि पूरी शिक्षा पद्धति में सोचने – समझने – तर्क करने – विचारने – मंथन करने जैसे कौशल प्रतिबंधित थे |  बच्चों को अपनी बुद्धि का प्रयोग कर लिखने की अनुमति नहीं थी वह अपनी इच्छा से फेरबदल नहीं कर सकते थे उन्हें जैसा पढ़ाया गया जैसा सुनाया गया जैसा बताया गया उसे ही याद करना होता और परीक्षा में वैसा ही अक्षरशः लिख देना होता था | बार-बार याद करने दोहराने रिवीजन करने की प्रक्रिया की शुरुआत यहीं से हुई जिसमें सोचने और समझना की शक्ति विलुप्त हो गई और यही अंग्रेज चाहते थे जिसमें वे कामयाब रहे उन्होंने ऐसी नस्ल तैयार की ऐसी पीढ़ी तैयार की जिन्हें पढ़ना और लिखना तो सिखाया गया किंतु सोचना और समझना नहीं और यही कारण भी था हिंदुस्तान के इतने लंबे समय तक अंग्रेजों के अधीनस्थ गुलाम बने रहने का, आप देखें जितने भी क्रांतिवीर हुए क्रांतिकारी हुए उन पर जुल्म करने वाले उनके विपक्ष में खड़े होने वाले ज्यादातर लोग अंग्रेज नहीं बल्कि इस अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से निकले पढ़े लिखे हिंदुस्तानी लोग ही थे ऐसे हिंदुस्तानी जो अंग्रेजियत के गुलाम थे हिंदुस्तान को गुलाम बनाए रखने में अंग्रेजों का उतना योगदान नहीं जितना अंग्रेजी हिंदुस्तानियों का रहा अंग्रेजी हिंदुस्तानी यानी वह पीढ़ी जो इस अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का परिणाम थी |
“आज हिंदुस्तान भले ही शारीरिक रूप से अंग्रेजों से आजाद हो गया है पर अंग्रेजीयत अभी हिंदुस्तान से जानी बाकी है | हिंदुस्तान आज भी मानसिक रूप से गुलाम है जिसमें मानसिक आजादी की क्रांति घटित होनी शेष है और यह मानसिक आजादी शिक्षा पद्धति को बदलकर ही संभव है ”
जिस तरह अंग्रेजों ने नीव बदलने का काम किया और पूरी पीढ़ी में फूट डाली अब यदि इसे ठीक करना है तो बदलाव की शुरुआत भी नींव से ही करनी होगी अर्थात इस शिक्षा पद्धति को बदलकर बचपन से बच्चों में सोचने समझने तर्क करने चिंतन करने मनन करने तुलना करने जैसे गुणों का विकास करना होगा |

पढ़ाई में मन ना लगने का सबसे बड़ा कारण ही यही है कि पढ़ाई का आधार डर और लालच रहा | जब तक बच्चों को डराया जाए तब तक वे पढ़ते हैं जब तक उन्हें किसी तरह का लालच दिया जाएगा उन्हें इनाम रूपी अलग-अलग लालच में फसाया जाएगा तब तक की पढ़ाई करेंगे उन्हें अगर मोटिवेट लगातार करते रहेंगे तो पढ़ाई करते हैं और जहां यह मोटिवेशन छूटेगा जहां यह लालच छोड़ता है वहां पर पढ़ाई करना बंद कर देते हैं । 
समस्या का कारण ही है कि पढ़ाई का आधार ही गलत है तो उसका फल सही कैसे हो सकता है ? जिस इमारत की नींव ही खोखली हो वह इमारत लंबे समय तक कैसे टिकेगी ? वह गिर ही जाएगी ! इसी प्रकार जब तक पढ़ाई का आधार डर या लालच रहेगा तब तक वह पढ़ाई सार्थक नहीं हो सकेगी ज्ञान तभी संभव है जब डर और लालच समाप्त हो जाए डर और लालच में रह ज्ञान संभव नहीं है यही कारण है कि बच्चे जो पढ़ाई करते हैं जो ज्ञान ज्ञात करने का प्रयत्न करते तो हैं पर वह उनके पास ज्यादा समय नहीं रहता क्योंकि वह उस ज्ञान को ज्ञान ना समझ कर अपनी इच्छा पूर्ति का साधन समझ रहे हैं |

आपकी किन्ही पढ़ रहे बच्चों से पूछीए कि वह पढ़ाई क्यों कर रहे हैं ? तो आपको तरह तरह के उत्तर मिलेंगे कुछ इसलिए पढ़ रहे हैं कि पेरेंट्स का प्रेशर है कुछ इसलिए पढ़ रहे हैं कि अगर पढ़ाई नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे कुछ इसलिए पढ़ रहे हैं समाज को दिखा सके, किसी को नौकरी हासिल करनी है तो किसी को अपना बिजनेस सेटल करना है किसी को समाज में इज्जत और सामान चाहिए तो किसी को धन और दौलत ! सबके अपने-अपने उद्देश्य हैं अपने अपने कारण है पर इसमें मूल बात यह है क्या इन कारणों में मुख्य कारण यह भी है कि वह ज्ञान ज्ञात करने के लिए पढ़ रहे हैं? वह खुद को जानने के लिए, अपने अस्तित्व की पहचान के लिए पढ़ रहे हैं ? क्या उनकी पढ़ाई का मूल उद्देश्य ज्ञान हासिल करना है ? आत्मज्ञानी होना है ? या इसके अतिरिक्त कुछ और ? क्या उनकी पढ़ाई का उद्देश्य यह है कि वह कुछ ऐसा निर्माण कर सकें जिससे प्रकृति और समाज को लाभ हो ? क्या वे जन कल्याण के लिए पढ़ाई कर रहे हैं ? या निजी स्वार्थ के लिए ? यदि पढ़ाई आत्मज्ञानी होने, ज्ञान को उपलब्ध होने, जनकल्याण, के अतिरिक्त और किन्हीं भी कारणों से होगी वहां ज्ञान संभव नहीं है वहां जीवन संभव नहीं है | जिस दिन से पढ़ाई करने का आधार ठीक हो जाएगा पढ़ाई स्वतः ही होने लगेगी । पढ़ाई क्यों करनी है इसका कारण यदि अन्दर से उभरेगा तो मन अपने आप पढ़ाई करने में लगेगा । पढ़ाई में मन ना लगना प्रमाण है कि यह बाहर से थोपी जा रही है अंदर से उग नहीं रही है। पढ़ाई में मन कैसे लगे इसके टैम्परेरी कई समाधान मिल सकते हैं पर यदि परमानेंट समाधान चाहिए तो इसके आधार को गहराई से समझना होगा ।

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