प्रश्न : इस तरह हर चैप्टर – टॉपिक के पिक्चर और क्वेश्चन बनाने में काफी समय लगेगा क्या इस तरह इस विधि से समय से सिलेबस पूरा कर पाएंगे ?
उत्तर : महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि सिलेबस समय से पूरा हो पाएगा या नहीं अपितु उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि सिलेबस समय से पूरा कराना क्यों चाहते हैं ? सिलेबस पूरा कराने का उद्देश्य क्या है ? क्या अब तक हर साल जो सिलेबस टीचर्स कराते आए हैं बच्चे करते आए हैं इस स्कूल की शिक्षा पद्धति में होता आया है क्या वह सिलेबस बच्चे के माइंड में आज भी है ? क्या उस सिलेबस का ज्ञान, वह प्रश्न उत्तर, वह क्वेश्चन आंसर बच्चों के पास आज भी है ? क्या वह सिलेबस जो पिछले साल बच्चों ने किया था उसे यदि आज पूछ लिया जाए बिना उन्हें पूर्व सूचना दिए बिना रिवीजन का मौका दिए तो क्या वह आज भी उसे बता पाएंगे ? सुना पाएंगे? यदि नहीं ! तो ऐसे सिलेबस को कराने का क्या फायदा ? ऐसे सिलेबस को समय से पूरा कराने की क्या सार्थकता ? जिसे करा भी दिया जाए और वह बच्चों के पास आंशिक मात्र ही रह जाए ? मुख्य सवाल यह है कि हम सिलेबस समय से पूरा क्यों करना चाहते हैं ? इसलिए कि बच्चे की सोच – समझ जल्द से जल्द विकसित हो जाए ? बच्चे स्वाध्यायी हो जाएं ? बच्चे अपने जीवन को जानना शुरू कर दें ? बच्चे आत्मनिर्भर हो जाएं ? बच्चे ज्ञानी हो जाएं ? या इसलिए की स्कूल मैनेजमेंट खुश हो सके ? पेरेंट्स को खुश कर सकें ? और समाज में यह समय से सिलेबस पूरा करने का प्रचार कर सकें ? बात जब भी सिलेबस पूरा कराने की होती है तो सिलेबस नोटबुक में पूरा होता है या माइंड में ? यदि माइंड में सिलेबस पूरा होता है बच्चों के तो वह सिलेबस आज भी बच्चों के माइंड में होना चाहिए और यदि वह सिलेबस सिर्फ नोटबुक में सीमित रह जाता है तो ऐसे सिलेबस को पूरा करने की सार्थकता क्या है ? क्यों बच्चों को इतना स्ट्रेस में इतना प्रेशर में डाल दिया जाता है ? क्यों इतना दबाव दिया जाता है ? क्यों टीचर्स खुद भी प्रेशर में रहते हैं, स्कूल मैनेजमेंट खुद भी प्रेशर में रहता है और दूसरों को भी प्रेशर में डाल दिया जाता है ?
इस पूरी पढ़ाई के खेल में चार लोग होते हैं :
स्कूल मैनेजमेंट
टीचर
स्टूडेंट
पैरंट
स्कूल मैनेजमेंट दबाव देते हैं टीचर्स को, जिससे जाने अनजाने टीचर्स प्रेशराइज करते हैं बच्चों को और बच्चे प्रेशराइज करते हैं पेरेंट्स को और पेरेंट्स प्रेशराइज करते हैं स्कूल मैनेजमेंट को ! ये चारों एक दूसरे को प्रेशराइज करने का काम करते हैं और एक दूसरे से ही अनजान होते हैं कि वह जो काम कर रहे हैं वह जिस उद्देश्य के लिए एक दूसरे को प्रेशराइज कर रहे हैं जिस उद्देश्य के लिए एक दूसरे को दबाव में डाल रहे हैं स्ट्रेस में डाल रहे हैं उसकी सार्थकता क्या है ? उसकी उपयोगिता क्या है ? उसकी महत्वता क्या है ? इस दबाव से चारों को बाहर आना होगा तभी यह बदलाव संभव है ।
यकीनन इस विधि को पूर्ण रूप से जानने – सीखने और समझने में समय लगेगा लेकिन इस विधि को समझने के उपरांत बच्चे अपने सिलेबस को खुद से 3 से 4 महीने में स्वयं से तैयार कर सकते हैं । स्वयं से पूरा कर सकते हैं और इस तरह से पूर्ण कर सकते हैं कि उन्हें याद करने और रिवीजन करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी । क्योंकि उन्होंने जो कुछ भी पढ़ा होगा वह समझने के लिए पढ़ा होगा अपनी समझ के स्तर को विकसित करने के लिए पढ़ा होगा उनका उद्देश्य किसी एग्जाम में नंबर ला देना नहीं अपितु ज्ञान के मार्ग का पथिक होना होगा, ज्ञान ज्ञात करना होगा, समझ का उत्थान करना होगा ।